तुळशीची आरती
जय देवी जय देवी माय तुळसी।
निजपत्राहुनि लघुतर त्रिभुवन हे तुळसी॥धृ.॥
ब्रह्मा केलवळ मुळी मध्ये तो शौरी।
अग्री शंकर तीर्थे शाखापरिवारी।
सेवा करिती भावे सकळहि नरनारी।
दर्शनमात्रे पापे हरती निर्धारी॥जय.॥१॥
शीतळ छाया भूतळव्यापक तू कैसी।
मंजिरिची बहुआवड कमळारमणासी।
तव दलविरहित विष्णू राहे उपवासी।
विशेष महिमा तुझा शुभ कार्तिकमासी ॥जय.॥२॥
अच्युत माधव केशव पीतांबरधारी।
तुझिया पूजनकाळी जो हे उच्चारी।
त्यासी देसी संतति संपत्ति सुखकारी।
गोसावी सुत विनवी मजला तू तारी॥जय देवी.॥३॥
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