ओवाळू ओवाळू आरती
ओवाळू ओवाळू आरती कालीका अंबा । आरती कालीका अंबा।
मागे पुढे पाहू जाता अवघी जगदंबा । हो जाता अवघी जगदंबा ॥धृ॥
अदि मध्य अवसानी व्यापक होसी । अंबे व्यापक होसी ।
अणू रेणू जीव तुझा तया न त्यागिसी ॥१॥
भास हा अभास जिचा सौरस सारा । अंबे सौरस सारा ।
सारासार निवडू जाता न दिसे थारा ॥२॥
कळातीत कळानिधी पर्वती ठाण । अंबे पर्वती ठाण ।
भक्त शिवाजीसी दिधले पूर्ण वरदान ॥३॥
चिच्छत्ते, चिन्मात्रे, चित्त, चैतन्य बाळे । अंबे चैतन्य बाळे ।
विठ्ठल सुतात्माजी दावी पुर्ण सोहाळे ॥४॥
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