श्री हनुमंताची आरती
सत्राणें उड्डाणें हुंकार वदनी ।
करि डळमळ भूमंडळ सिंधुजळ गगनीं ।
कडाडिले ब्रम्हांड धाके त्रिभुवनी ।
सुरवर नर निशाचर त्या झाल्या पळणी ॥१॥
जय देव जय देव जय श्रीहनुमंता ।
तुमचेनी प्रसादें न भी कृतांता ॥धृ.॥
दुमदुमलें पाताळ उठिला प्रतिशब्द ।
थरथरला धरणीधर मनिला खेद ।
कडाडिले पर्वत उड़गण उच्छेद ।
रामी रामदास शक्तीचा शोध ॥ २ ॥
जय देव जय देव जय श्रीहनुमंता ।
मचेनी प्रसादें न भी कृतांता ॥धृ.॥
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