श्री विष्णूची आरती
ओवाळू आरती मदन गोपाळा ।
श्यामसुंदर गला वैजंतीमाळा ॥धृ.॥
चरणकमळ ज्याचे अति सुकुमार ।
ध्वजवज्रकुश बिद्राचा तोडर ॥ १ ॥
नाभिकमल ज्याचे ब्रम्हयाचे स्थान ।
हृदयी पदक शोभे श्रीवत्सल लंचन ॥२॥
मुखकमल पाहंता सुखाचिया कोटी ।
वेधीयेले मानस हरपली दृष्टी ॥३॥
जडित मुकट ज्याचा देदीप्यमान ।
तेणे तेजे कोंदले अवघे त्रिभुवन ॥४॥
एका जनार्दनी देखियले रूप ।
रूपपाहता जाहले अवघे तद्रूप ॥५॥
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