Shree Devi Saptshrungi Stotra
श्रीगणेशाय नमः ॥ श्री सरस्वत्ये नमः ॥
श्री गुरुभ्यो नमः ॥ श्री दुर्गादेव्ये नमः ॥


ॐ नमो श्री सप्तशृंगी निवासिनी | नमो सह्याद्रीशिखर रूपिनी |
नमो त्रिगुणरूप विश्वमोहिनी | जगजननी तुज नमो ॥१॥

नमो महिषासुरमर्दिनी | नमो सुरवरबंधमोचनी |
नमो भक्त मनोल्हासिनी दैत्यकुलदाहिनी तुजनमो ॥२॥

नमो मुळमाया भगवती | तुझीया नामे भक्त गर्जती |
सगुणरूप नटली पर्वती | पहाता तटस्थ सूरनर ॥३॥

कष्टे लंघुनी गिरीवर | जवळ करिता तुझे द्वार |
शिन भाग उतरे पार |नवल अदभूत हेची पै ॥४॥

सुंदर ध्यान मृत्युलोकी | भक्तलिन सदविवेकी |
साष्टांग नमोनी नयन झाकी | हृदय मंदिरी रूप तुझे ॥५॥

सर्व सुरांचे तेज एकवटले | आष्टादश भूजारूप नटले |
दानवा अंगी भय सुटले | उर्वीवरी प्रगटता ॥६॥

सर्व देवांची एकशक्ती | प्रेमभावे करावी भक्ती |
ओळंगती चारी मुक्ती |निश्चय चित्ती असावा ॥७॥

औट पिठे भारता माझारी | अर्धपिठ सप्तश्रुंगगिरी |
दुर्गा हीच आष्टादशकरी | पावली निर्वाण भक्तासी ॥८॥

विप्रकुळांची कुलस्वामिनी | रेणुकामाता पुर निवासिनी |
क्षत्रियकुल वरदायिनी | तुळजापूर तुकाई ॥९॥

तृतीय वर्ण वैश्याची आई | करविर निवासिनी रमाबाई |
शुद्रादि चारी वर्णा ठायी सप्तशृंग दुर्गा कृपाळू ॥१०॥

ध्यान धावते पर्वत कंदरी | क्रोधावली असुरावरी |
नानापरी आयुधेकारी | रणांगणी उभी जैसी ॥११॥

कधी सौम्यरूप दिसे | कधी नयना उग्रता भासे |
भक्तजना लाविले पिसे | संचारोनी नाचवी थै थै ॥१२॥

सन्मुख पर्वती मार्कंडेय मुनी | वदे सप्तसतीचा मधुर ध्वनी |
परिसे जगदंबा लक्ष लावोनी | हस्त कर्णासी लाविला ॥१३॥

घोडंब निवासीनि धृवबाला | स्तवनार्थी उभी पूर्वेला |
पाठीशी परशुरामबाला | निसर्ग रचना सुंदर ॥१४॥

गणेशतीर्थी लंबोदर | यमुनातांबुल तीर्थ मनोहर |
शिवालय तीर्थी सिद्धेश्वर | स्नाने पतिता उद्धरी ॥१५॥

पिंडश्राद्ध पितृतर्पण | करिता पूर्वजा उद्धरण |
मनिद्विपी स्वानंदे करून | समिपता मुक्ती भोगिती ॥१६॥

नवदुर्गा पर्वत शिखरी | शस्त्रे सज्ज घेवुनिया करी |
गुप्तउभ्यारण सुंदरी | ध्वजरक्षणी सावध ॥१७॥

सप्तमातृका विक्राळरूप | करी पाजाळुनी पोत दीप |
स्वेच्छे खेळती समीप | रक्षणी सप्तश्रुंगाचे ॥१८॥

वेताळादि चंडीका भैरव | शाखिनी डाकिनी बिरुदेव |
सांभाळी ती स्वयमेव | अंबिका राजदरबार ॥१९॥

अदभूत चमत्कार अनेक | वर्णिता वाटेल कौतुक |
सर्वस्वी नटली रूप एक | भगवती अंबिका समर्थ ॥२०॥

राम असता बाल ब्रम्हचारी | तीर्थे फिरलासे उर्वीवरी |
तव सप्तश्रुंगासी रावणारी | दर्शनास्तव पातले ॥२१॥

रघुनाथ वनवासी असता | पंचवटी ये निवास करिता |
संगे घेउनी जनकदुहिता | मातेच्या दर्शनी येतसे ॥२२॥

अद्यापि सिंदूर चर्चुनी | जगदंबे सन्मुख बैसोनी |
भक्तजना प्रथम दर्शनी | सगुणरूप नटला असे ॥२३॥

ऐसी माय माझी अनादी | सदभक्ता उतरावी भवाद्धी |
योगिया ब्रम्हानंदपदी | स्वानंदे बैसवी अक्षय ॥२४॥

सप्तश्रुंगरूपे सप्तशती | शुद्ध वैखरी उच्चारिती |
तयासीच उत्तमगती | तवकृपे लाभतसे ॥२५॥

ऐसी जगन्माता श्रीमंतीण | भक्ता का करिसी हैराण |
अन्न उदाक्स्तव दिनदिन | हिंडवीसी दारोदारी ॥२६॥

भक्ता कसोटी लाविसी | खरे खोटे निवडिसी |
सदभक्ता अपंगीसी | अंती दाविसी ब्रम्हरूप ॥२७॥

तुझे गाता गुणगान | राधासुत झाला लीन |
जळी स्थळी तुझे ध्यान | अहोरात्र ध्यातसे ॥२८॥

कधी दाविसी चितस्वरूप | भक्ती करिता जपतप |
अंतरीचा ध्यान दिप | अखंड जळतो तवकृपे ॥२९॥

आता नको हो अंत पाहू | करपल्लवे किती तुज पाहू |
यातना कुठवरी साहू | विश्वमोहिनी दयाळे ॥३०॥

जीवसृष्टीची जीवन कळा | चिदानंदरुपी चितकळा |
त्रिभुवन सुंदरी वेल्हाळ | भोळा खुळा भाव माझा ॥३१|

माया ब्रंम्हात मानिती भेद | निवडीता तटस्थ झाले वेद |
ज्ञानवंत पै घालिती वाद | खेद बहु वाटतसे ॥३२॥

अंबे तूच रामकृष्ण हरी | राधा रुक्मिणी जनककुमारी |
माया ब्रम्हाचा खेळ दशअवतारी | आभेदत्व नसेची ॥३३॥

देहासवे फिरे छाया | तैसी व्यापली श्रीहरीची माया |
ब्रम्ह स्वरूपी ओळख द्याया | जगदंबिका समर्थ ॥३४॥

पित्याची ओळखी माताच सांगे | बाप म्हणविता वर पांगे |
दूषण येईल निजांगे | समाधान मायकरी ॥३५॥

सगुणसृष्टी सगुणदेव | भावे मानिले स्वयंमेव
भेदाभेद पहाती जीव | सोहं शिवा विसरले ॥३६॥

माजेल वादाचा पाल्हाळ | दुर्गा भगवती गुण वेल्हाळ |
आमंगळासी करिले मंगळ | कृपामृत दृष्टीने ॥३७॥

तुझे रूप ध्यानी मनी | शिरी मुकुट पंचफणी |
केस मोकळे सोडोनी | मान झुकविली उत्तरे ॥३८॥

कुंकुम लाविले स्वस्तीक | हरिंद्रा गुलाल बुक्का टिक |
वक्र भुवया सुरेख | धनुष्या कृती शोभती ॥३९॥

शंकरे चंद्रमा धरिला जटेत तोची | तुझिया मुकुटात |
दैत्यावरील क्रोध बहुत | शितल होण्या धरीला असे ॥४०॥

किंचित मुरडीले नाशिक | नथनी सर्जाची सुरेख |
गालावरी लावली टीक | दृष्ट सगुनीला होईल ॥४१॥

कर्णफुले शोभती छान | तांबुल विडामुखी धरून |
अलंकार गळा भरून | नाभिपर्यंत लोळतसे ॥४२॥

पुतळ्याची हौस भारी | ताईत पेट्या डोरले शिनगरी |
कंठा बोरमाळ गळसरी | महाराणी शोभतसे ॥४३॥

रंगारंगाच्या पैठण्या फार | नारळी जरतारी बुट्टेदार |
छातीवरी उभा पदर | गुर्जरनि माय माझी ॥४४॥

पायघोळ दिसे छान | शिंदेशाही तोडर घालोन |
सच्य चरण उचलोन | वाम पुढे टाकिला ॥४५॥

कमंडलुरुद्राक्ष माला | वामसव्य दोन्ही कराला |
सव्य हास्ती परशु धरीला | वाम लाविला मुकुटासी ॥४६॥

आणिक हस्त चतुर्दश | शस्त्रे धरिले बहुवश |
दृष्टदानव दंडनास | वर्णिता विस्तार वाढेल ॥४७॥

आश्विन शुद्ध कोजागिरी | श्रुंगार पुजा षोडशोपचारी |
महापूजा रात्रभरी | नामगजरी कल्लोळ ॥४८॥

कोजागिरीचे चंद्रामृत | रम्य वनश्री डोलत |
वैकुंठ कैलास भासत | भाविक भक्ता स्वानंद ॥४९॥

वनस्पती सिद्ध सोज्वळ | धरूजाता होतसे ज्वाळ |
संधीनी संजीवनी कोमल मृतजीवा उठविती ॥५०॥

गळसरीची प्रदक्षिणा | सोपी वाटे बहुजना |
आखतिर्थी प्रदक्षिणा | आष्टतिर्थ दर्शन ॥५१॥

सूर्यतीर्थ कालिका तिर्थ | गंगा लक्ष्मी सरस्वती तिर्थ |
तांबुल यमुना शितला तिर्थ | स्नाने पापे नासती ॥५२॥

तिसरी महा प्रदक्षिणा | सुरथराजा वैश्यस्थाना |
वणी मार्कंडेया सहजाना | गणती तिन योजने ॥५३॥

कृतयुगी ब्रम्हा सांगे नारदा | सिद्धीदायक भक्त वरदा |
कालिका लक्ष्मी शारदा | जगदंबीका हिच पै ॥५४॥

ममकमंडलु पासून निघाली | गिरीजा तीच गीरणा नाम पावली |
महानदित मुख्य जहाली | पर्वता सन्नीध वहातसे ॥५५॥

ऐसा या अर्धपीठाचा महिमा | नित्य जपावे बत्तीस नामा |
दुर्गभीमा दुर्गाभामा | दुर्गमात्मस्वरूपिणी ॥५६॥

दुर्गा दुर्गा र्तीशमनी | दुर्गमा दुर्गपद्वी निवारीनी |
दुर्गमच्छेदिनी | दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी | दुर्गभ्या ॥५७॥

दुर्गतोध्वारिनी दुर्गनिहंत्री | दुर्गमापहा दुर्गमासुर सहंत्री |
कलीयुगी नाममंत्री | उद्धरतिल मानव ॥५८॥

दुर्गमज्ञानदा दुर्गमार्ग स्वरुपिनी | दुर्गभा दुर्गमायुधधारिणी |
दुर्गमालोका दुर्गमार्थ स्वरुपिनी | दुर्गदैत्य लोक दवानला ॥५९॥

दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमाश्रीता | दुर्गमविद्या दुर्गमता |
दुर्गमांगी आंबामाता | दुर्गमज्ञान संस्थाना ॥६०॥

दुर्गभ्या दुर्गमेश्वरी दुर्गभात्रिभुवना माझारी |
नाम पठणे संकटे निवारी | दुर्गदारिणी भगवती ॥६१॥

नामस्मरणी ठेवुन विश्वास | त्रिकाल जपावे बत्तीस नामास |
निर्विघ्न करील भक्तास | सप्तश्रुंगी निवासिनी ॥६२॥

भक्तिसाधन नामची श्रेष्ठ | नचसाधती जपतपाचे कष्ट |
नाम महिमा वरिष्ठ | कलीयुगा माझारी ॥६३॥

तनमन धनेची शरण | धरावे आंबेची चरण |
त्रिविध ताप दारूण | निवारील निश्चये ॥६४॥

निष्काम करिता भक्ती | आंगीबाने चैतन्य शक्ती |
चौ पुरुषार्थ चारीमुक्ती | वोळंगती सर्वस्वे ॥६५॥

अमृत मोहिनी निवासी | महालयाच्या पंचक्रोसि |
एक योजने दक्षिणेसी | जन्मभूमी कारेगाव ॥६६॥

प्रतिष्ठान निवासी एकनाथ | मासिक वारी पिता करीत |
नाथ कृपेने जन्म होत | देहनाम निवृत्ती ॥६७॥

माता माझी राधाबाई | मुखी नाम आंबाबाई |
बालपणी मंत्र देई | तोची लोलो लागला ॥६८॥

सप्तश्रुंग दुर्गामाई | तुझी लीला तुची वदवी |
भरून उरली सर्वाठाई | मी तव अज्ञान बालक ॥६९॥

श्रोतया विनवी भक्तकवी | चुकी भुली पदरात घ्यावी |
बहुश्रुत अनुभवी | नमन माझे साष्टांग ॥७०॥

इतिश्री पद्म पुराणांतरगत | वर्णिली सह्याद्री खंडात |
मार्कंडेय सप्तशतीत | सविस्तर कथियेले ॥७१॥

तया आधारे वर्णन केले | भक्ती भावे श्रुंगारीले |
श्रीजगदंबे चरणी वाहिले | भक्ता मुखी वदवावे ॥७२॥

॥ श्रीजगदंबार्पणमस्तु ॥